■ फूट गए मुंह सारों के। किनारा कर रहे हैं नपुंसक। निंदा का स #शिखंडी- ■ फूट गए मुंह सारों के। किनारा कर रहे हैं नपुंसक। निंदा का साहस नहीं।।