■ प्रेरक / हताश विद्यार्थियोँ के लिए…
■ सफलता का मूलमंत्र “मनोबल”
★ अंगद नहीं हनुमान बनें
★ सुंदर-कांड से लें प्रेरणा
【प्रणय प्रभात】
अभीष्ट (लक्ष्य) की प्राप्ति मात्र एक विशिष्ट गुण से प्राप्त हो सकती है। जो सफलता के साथ-साथ कीर्ति का विषय भी बनता है। वह गुण है “आत्म-बल” जिसे मनोबल भी कहा जाता है। इसकी प्रेरणा परम् सद्गुरु के रूप में अतुलित बल के धाम श्री हनुमान जी महाराज शत योजन के सागर का लंघन करते हुए दे चुके हैं। सुंदर-कांड का सूत्रपात करने वाला यह प्रसंग उन विद्यार्थियोँ के लिए है, जिन्हें एक माह बाद परीक्षा का समुद्र पार करना है। विशेष रूप से उन विद्यार्थियोँ के लिए जो अपनी सामर्थ्य को लेकर स्वयं आशंकित हैं। कारण है अपनी क्षमता को लेकर अनभिज्ञता। महाबली बाली के पुत्र अंगद का नाम दिव्य श्रीराम कथा में शीर्ष पर हो सकता था। यदि उसके पास बजरंग बली जैसा मनोबल होता। वापसी को लेकर उपजे एक छोटे से संशय ने परम् पराक्रमी अंगद को उस सुकीर्ति से वंचित कर दिया, जिसे अर्जित करने का अवसर उसे पवनपुत्र से पहले मिला था।
श्री रामचरित मानस के पंचम सोपान सुंदर-कांड का सीधा सरोकार हमारे जीवन से है। जिसे अभिशप्त होने के बाद भी वरदायी बनाया जा सकता है। शर्त केवल इतनी सी है कि हमें “जाम्बुवान” सी प्रेरणा देने वाला कोई मार्गदर्शी हो। जो हमें हमारी शक्ति से अवगत कराते हुए हमारे जन्म का प्रयोजन हमें सहज ही समझा सके। इसके बाद दायित्व हमारा है कि हम संशय के मायाजाल से बाहर निकल कर अपने लक्ष्य को तय करें और चल पड़ें उसे पाने की राह पर। अपने आराध्य के प्रति विश्वास और अहंकार-रहित सामर्थ्य हमें भी एक गौरव-गाथा का नायक बना सकता है। आवश्यकता इस बात की भी है कि हम लक्ष्य प्राप्ति को ईमानदारी से प्राथमिकता दें। सफलता की राह में बाधक भय के विरुद्ध साहसी और अवरोध-निवारण के प्रति विवेकी बनें। इसके बाद कदापि संभव नहीं कि कोई मैनाक पर्वत आपकी राह का रोड़ा बने। कोई सिंहिका आपकी उड़ान पर अंकुश लगा सके। कोई सुरसा आपकी सफलता की राह में बाधक बन पाए। इसके बाद परीक्षा रूपी चुनौती का सामना अपने ज्ञान-बल से सहज ही कर सकते हैं। जो परास्त लंकिनी की तरह आगे बढ़ने का मार्ग हमारे लिए स्वयं प्रशस्त कर देगी। आगे की यात्रा और उसका समापन निस्संदेह सुखद होगा।
वस्तुतः हमारा विद्यार्थी जीवन किष्किंधा-कांड की तरह ऊहा-पोह से भरपूर होता है। जिसमें अंत तक लक्ष्य प्राप्ति का मानसिक दवाब तनाव का कारण बनता है। जैसे ही हमारा आत्मबल सुप्तावस्था त्याग कर जागृत होता है, सुंदर-कांड का मंगलाचरण हो जाता है। सुंदर-कांड अर्थात वह सोपान, जिसमें प्रत्येक कार्य से पूर्व विचार (चिंतन) का प्रमाण मिलता है। साथ ही विचार के क्रियान्वयन के उदाहरण क्रमवार मिलते हैं। जो सफलता की राह को आसान बना देते हैं। राह में आने वाली प्रत्येक स्थिति के अनुरूप छोटा (विनम्र) या बड़ा (क्षमतावान) बनना भी हनुमान जी सुंदर-कांड के माध्यम से सिखाते हैं। वे पग-पग पर सीख देते हैं कि छोटा (दर्परहित) बन कर ही बड़ा काम आसानी से किया जा सकता है।
इन सभी सीखों का स्मरण रखिए। अनुभवी मार्गदर्शकों को सम्मान दीजिए। अपने जीवन के लक्ष्य को सर्वोपरि मानिए। किंतु-परंतु, अगर-मगर जैसी शंकालु मन:स्थिति का परित्याग करिए और ईष्ट का स्मरण कर लगाइए पराक्रम की छलांग। विश्वास मानिए सीता रूपी सफलता की प्राप्ति आपको होकर ही रहेगी। शंकित अंगद की तरह हाथ आए स्वर्णिम अवसर को गंवाने की जगह महाबली हनुमान की तरह हो जाइए सफल। स्वर्णाक्षरों में अपना नाम इतिहास के पन्नों पर अंकित कराने में। इसके बाद प्राप्त सफलता स्वतः आपको अनूठे वरदान देगी। ध्यान यह भी रहे कि सफलता साधनों नहीं साधना पर निर्भर करती है। संसाधनों की कमी का रोना रोने वाले सदैव के लिए गांठ बांध लें कि-
“मंज़िलें बस उन्हीं को मिलती हैं,
जिनके सपनों में जान होती है।
पंख होने से कुछ नहीं होता,
हौसलों से उड़ान होती है।।”
अपनी लेखनी को विराम देने से पूर्व मैं अपनी स्वयं की चार सनातनी (शाश्वत) पंक्तियां परीक्षाकाल रूपी समुद्र के तट पर बैठे समस्त विद्यार्थियों को अग्रिम शुभकामनाओं के साथ सौंपता हूं। सम्भवतः आपके लिए प्रेरक व ऊर्जादायी सिद्ध हो सकें-
“विवशता कुछ नहीं होती, मनोबल पास में हो तो।
सबक़ मानस ये तुलसीदास का हमको सिखाता है।।
जहां संशय किसी अंगद का साहस छीन लेता है।
वहीं से शौर्य का हनुमान सागर लाँघ जाता है।।”
★प्रणय प्रभात★
श्योपुर (मध्यप्रदेश)
■ निवेदन अभिभावकों व शिक्षकों से भी। इसे पढ़कर लेखकीय भावों से अपने बच्चों और विद्यार्थियोँ को भी समय रहते अवगत कराएं। ताकि वे शंका और भय से उबर कर ऊर्जा व उत्साह के साथ परीक्षा का सामना करने को तैयार हों और सफलता का वरण कर सकें। जय राम जी की। जय परम् सदगुरुदेव हनुमान जी की। जय बाबा तुलसीदास जी की। जय श्री रामचरित मानस जी की।