■ प्रेरक प्रसंग
■ कष्ट और संयम का उपहार है “प्रतिष्ठा”
【प्रणय प्रभात】
जो लोग समझते हैं कि सफलता की तरह प्रतिष्ठा का कोई शॉर्ट-कट होता है। जो लोग यह मानते हैं कि सुर्खियों में आना और बने रहना बेहद आसान है। वे लोग पूरी तरह से ग़लत हैं। सच यह है कि सफलता कभी-कभी भाग्य या समय-सुयोग से भले ही मिल जाए। प्रतिष्ठा की राह बिल्कुल भी आसान नहीं है। इसके लिए न केवल जटिल राहों से गुज़रना पड़ता है बल्कि सतत संघर्ष भी करना पड़ता है। संघर्ष मतलब झगड़ा नहीं आत्म-संघर्ष। अपनी तमाम आशाओं और इच्छाओं के साथ। इसी सच्चाई को साबित करता है यह एक प्रसंग।
एक थका-माँदा शिल्पकार लंबी यात्रा के बाद किसी छायादार वृक्ष के नीचे विश्राम के लिए बैठ गया। वहां अचानक उसे एक पत्थर पड़ा दिखाई दिया। शिल्पकार ने उस सुंदर से पत्थर के टुकड़े को उठाया। सामने रखा और अपने औजारों के थैले से छेनी-हथौड़ी निकाल कर उसे तराशने के लिए जैसे ही पहली चोट की, पत्थर जोर से चीख पड़ा:- “हाय, हाय! मुझे मत मारो।” दूसरी चोट पर वह और भी ज़ोर से रोने लगा:- “मत मारो मुझे, मत मारो… मत मारो।”
शिल्पकार ने उस पत्थर को छोड़ दिया और अपनी पसंद का एक दूसरा टुकड़ा उठाया। उसे हथौड़ी से तराशने लगा। वह टुकड़ा बिना आह किए चुपचाप छेनी-हथौड़ी के वार सहता गया और देखते ही देखते उस पत्थर के टुकड़े से एक देवी की प्रतिमा उभर आई।
उस मनोरम सी प्रतिमा को वहीं पेड़ के नीचे रख कर वह कुशल शिल्पकार अपनी राह पकड़ कर आगे बढ़ गया।
कुछ समय बाद उस शिल्पकार को फिर से उसी पुराने रास्ते से गुज़रना पड़ा। जहाँ उसने पिछली बार विश्राम किया था। वह उस स्थान पर पहुँचा तो देखा कि वहाँ बने एक भव्य मंदिर में स्थापित एक मूर्ति की पूजा-अर्चना हो रही है। उसे पहचानते देर नहीं लगी कि मूर्ति वही है, जो उसने ही बनाई थी। उसने देखा कि मूर्ति के सामने भक्तों की भीड़ लगी हुई है। जयघोष के साथ भजन, आरती आदि हो रही है। भक्तों की क़तार आगे बढ़ने में लगीं हैं। उसने देखा कि पत्थर का जो पहला टुकड़ा उसने रोने, चिल्लाने की वजह से छोड़ दिया था, वह भी एक ओर पड़ा है तथा लोग उस पर नारियल फोड़ कर देवी के चरणों मे चढ़ा रहे है।
शिल्पकार के मन में विचार आया कि जीवन में कुछ बन पाने और मान-प्रतिष्ठा पाने के लिए कष्ट सहना ज़रूरी है। संदेश यही है कि यदि हम अपने वैयक्तिक जीवन के शिल्पकार (माता-पिता, शिक्षक, आर्गदर्शक, गुरु, ईश्वर आदि) के भावों को पहचान कर, उनका सत्कार कर, कुछ कष्ट झेल लेते हैं तो जीवन यशस्वी बन जाता है और बाद में विश्व उसका सत्कार करता है। इसके विपरीत जो डर जाते हैं और बच कर भागना चाहते हैं, वे बाद में भी जीवन भर कष्ट ही झेलते हैं। उनका सत्कार कोई नहीं करता। अब सोचना आपको है कि आप अपने लिए कौन सा पथ चुनते हैं और कष्टों के दौर में किस हद तक संयम दिखा पाते हैं।।
【प्रणय प्रभात】
संपादक / न्यूज़ & व्यूज़
श्योपुर (मध्यप्रदेश)
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