लिखा है किसी ने यह सच्च ही लिखा है
हाँ वो लिपस्टिक रक़ीब लगती है
अब नहीं बजेगा ऐसा छठ का गीत
होठों पे वही ख़्वाहिशें आँखों में हसीन अफ़साने हैं,
तेरी कमी......
Abhinay Krishna Prajapati-.-(kavyash)
मुक़ाम क्या और रास्ता क्या है,
हमारी शाम में ज़िक्र ए बहार था ही नहीं
मुक्तक
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
बोनूसाई पर दिखे, जब जब प्यारे सेब ।
शिकायत
धर्मेंद्र अरोड़ा मुसाफ़िर
लेखक कि चाहत
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
उनके रुख़ पर शबाब क्या कहने
चाहे हमें तुम कुछ भी समझो
सामयिक साहित्य "इशारा" व "सहारा" दोनों दे सकता है। धूर्त व म