■ प्रणय के मुक्तक
■ एक क़लम के सात रंग!!
【प्रणय प्रभात】
#आईना-
“खोट हो तो सामने इनके न आना।
जब तलक मुमकिन हो अपना मुँह छुपाना।।
आईनों को कोसने से कुछ न होगा।
आईनों का काम है सूरत दिखाना।।”
#कोशिश-
“मन से कोशिश करनी होगी
रिश्ते का मानी बचा रहे।
दिल में सूखा ना पड़ जाए
आँखों का पानी बचा रहे।।”
#छलावा-
“सिर्फ़ भरम में जीते थे।
सब अपना है दावा था।।
खो कर ये मालूम हुआ।
पाना एक छलावा था।।”
#क़सम-
“थक चुकी बोझिल निगाहें,
चाहती हैं अब रहम।
नींद तुम रूठो न मुझसे,
तुमको ख़्वाबों की कसम।।”
#ख़याल-
“हर बात जुदा होती है हर बात की तरह,
हालात बदल जाते हैं हालात की तरह।
हर दिन नहीं जो एक सा होता हरेक दिन,
हर रात कहाँ होती है हर रात की तरह?”
#हिसाब-
“अगर ये चाहे जो बाक़ी बची सही गुज़रे,
तू बदमिज़ाजी में जाकर के कहीं आग लगा।
तुझे था शौक बहुत सब को नोच लेने का,
अब ज़रा बैठ के ज़ख्मों का गुणा-भाग लगा।।”
#चाँद-
“दिन भर आहों पर आहें
भरता है चाँद,
रात की धुन पे अठखेली
करता है चाँद।
बात अलग क़ुदरत को
ये मंज़ूर नहीं,
पर ये सच है सूरज पे
मरता है चाँद।।”
■प्रणय प्रभात■
●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)