तेरी जुल्फों के साये में भी अब राहत नहीं मिलती।
ग़लतफ़हमी में क्यों पड़ जाते हो...
दोनों की सादगी देख कर ऐसा नज़र आता है जैसे,
मुझे मालूम हैं ये रिश्तों की लकीरें
जब कोई हो पानी के बिन……….
हो पवित्र चित्त, चित्र चांद सा चमकता है।
ग़ज़ल _ नहीं भूल पाए , ख़तरनाक मंज़र।
*चिकने-चुपड़े लिए मुखौटे, छल करने को आते हैं (हिंदी गजल)*
हंसना आसान मुस्कुराना कठिन लगता है
आज़ाद भारत का सबसे घटिया, उबाऊ और मुद्दा-विहीन चुनाव इस बार।
उस स्त्री के प्रेम में मत पड़ना
"कहने को हैरत-अंगेज के अलावा कुछ नहीं है ll
"कोशिशो के भी सपने होते हैं"
हुआ उजाला धरती अम्बर, नया मसीहा आया।
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)