■ नज़्म / धड़कते दिलों के नाम…!
■ नज़्म /
एक कहानी है रूमानी…!
【प्रणय प्रभात】
वक़्त हो तो आइए,
इक दास्तां सुन लीजिए।
कुछ रुमानी ख़्वाब अपने
ज़हन में बुन लीजिए।।
इश्क़ कैसे जागता है
जागती हैं ख़्वाहिशें।
दो दिलों को किस तरह से
जोड़ती हैं बारिशें।।
आज भीगी सी है रुत
महकी हुई सी रात है।
हम जवां होने को थे
ये उन दिनों की बात है।।
था वो महीना जून का
हो कर चुकी बरसात थी।
थोड़ी तपिश थी आसमां पे
अब्र की बारात थी।।
वाकिफ़ नहीं थे इश्क़ से
ना आशिक़ी के रंग में।
मासूम सी इक गुलबदन
अल्हड़ सी लड़की संग में।।
पहचान थी कुछ रोज़ की
ज़्यादा न जाना था उसे।
था हुक्म घर वालों का तो
घर छोड़ आना था उसे।।
घर से निकल कुछ देर में
कच्ची सड़क पर आ गए।
इके बार फिर से आसमां पे
अब्र काले छा गए।।
घर दूर था उसका अभी
रफ़्तार बेहद मंद थी।
बरसात के आसार थे
बहती हवा अब बंद थी।।
मौसम के तेवर भांप के
संकोच अपना छोड़ कर।
कुछ तेज़ चलिए ये कहा
मैने ही चुप्पी तोड़ कर।।
ठिठकी, रुकी, बोली लगा
झरना अचानक से बहा।
मैंने सुना उस शोख़ ने
इक अटपटा जुमला कहा।
थे लफ़्ज़ मामूली मगर
मानी दुधारी हो गए।
बेसाख़्ता बोली वो
मेरे पाँव भारी हो गए।।
ये समझ आया नहीं
दिल आह बोले या कि वाह।
चौंक कर चेहरे पे उसके
थम गई मेरी निगाह।
एकटक देखा उसे
मौसम शराबी हो गया।
मरमरी रूख शर्म से
बेहद ग़ुलाबी हो गया।।
पल भर में ख़ुद की बात ख़ुद
उसकी समझ मे आ गई।
क्या कह गई ये सोच के
वो नाज़नीं शरमा गई।।
नीचे निगाहें झुक गई,
लब भी लरज़ने लग गए।
बरसात होने लग गई
बादल गरजने लग गए।।
नज़रों से नज़रें मिल गईं
माहौल में कुछ रस घुला।
उसने दिखाया पाँव अपना
राज़ तब जाकर खुला।।
गीली मिट्टी में मुझे
लिथड़ी दिखीं जब जूतियां।
पाँव भारी क्यों हुए थे
ये समझ आया मियां।।
वाक़या छोटा था पर
इक ख़ास किस्सा हो गया।।
मुख़्तसर सा वो सफ़र
जीवन का हिस्सा हो गया।।