■ दास्तानें-हस्तिनापुर
#लघुकथा-
■ नई चाल….!!
【प्रणय प्रभात】
धृतराष्ट्र के माथे पर तमाम बल पड़े हुए थे। चेहरा ज़र्द और पसीने से तर था। बेचैनी के आलम में उसने सवाल का गोला संजय पर दाग ही दिया। सवाल यक्ष-प्रश्न से कम ख़तरनाक नहीं था। सवाल नए सेवकों की भर्ती का था। राजकोष ख़ैरात बांट कर ख़ाली हो चुका था। जनता सिंहासन से खदेड़ने को बेताब थी। दुर्योधन, दुःशासन थोथी वाह-वाही के लिए मोहरें लुटाए जा रहे थे। प्रश्न यही था कि ऐसे में नए सेवकों को पगार कैसे दी जाएगी।
महाराज की इसी दुविधा को पल भर में शांत किया संजय के छोटे से जवाब ने। जिसे सुनकर धृतराष्ट्र की बत्तीसी खिल गई। संजय ने बताया कि भर्ती कितनी ही बार निकले। तैनाती का मुहूर्त कभी नहीं आएगा। क्योंकि गुरु द्रोण के मार्गदर्शन और मामा शकुनी के निर्देशन में “पर्चे लीक” करने की कमान शिशुपाल, जयद्रथ और शिखंडी ने संभाल ली है। पितामह के कानों ने काम करना बंद कर दिया है और कर्ण भाऊ के मुंह में दही जमा है। माता गांधारी को पचड़े में पड़ना नहीं है। यही नहीं, आवेदन के नाम पर वसूली अशर्फियों से ख़ज़ाना फिर भरता जा रहा है। अब महल में अपार शांति है और दोनों दाढ़ी पर हथेली रगड़ते हुए धूर्तता के साथ ठहाके लगा रहे हैं।