■ दरकार एक नई आचार संहिता की…
■ दरकार एक नई आचार संहिता की…
【प्रणय प्रभात】
मौजूदा दौर में देश की सरकार को शांतिकाल से अलग युद्ध व आपदा काल के हिसाब से आचार संहिता बनानी चाहिए। जिसके नियम तत्काल प्रभाव से लागू व रद्द होने वाले हों और उनका उल्लंघन गम्भीर व तत्काल दंडनीय अपराध। आम से ख़ास जन और संतरी से मंत्री तक सबके लिए एक समान।
इस आचार संहिता के तहत हर तरह की वो आज़ादी एक नियत अवधि के लिए प्रतिबंधित हो जो लोकहित व राष्ट्रहित के विरुद्ध हो। सत्ता या सत्ताधीशों के लोकतांत्रिक विरोधियों के लिए नहीं। दमन नहीं, चमन में अमन के लिए। तानाशाही नहीं, केवल लोकशाही के लिए। एक ऐसी आचार संहिता, जिसके दायरे में देश का प्रत्येक नागरिक समान रूप से आए। फिर चाहे वो सरकारी हो या असरकारी। यहां तक कि बड़े से बड़ा राजनेता भी।
ध्यान रखा जाना चाहिए कि कोरोना महामारी जैसी आपदा वैश्विक संकट की शुरुआत भर है, अंत नहीं। इसके स्तर में बदलाव अवश्यम्भावी हैं। बर्चस्व को बेताब विस्तारवादी चीन जैसे नीच देश का वजूद कभी भी नया ख़तरा उत्पन्न कर सकता है। जिसके साथ युद्धोन्माद से ग्रसित रूस, उत्तरी कोरिया जैसे विध्वंसक देश खड़े हैं। दुनिया को अपने हथियारों का बाज़ार भर मानने वाले अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, इज़रायल जैसे देश विश्वयुद्ध की आंच को फूंक देने में जुटे ही हैं। ईरान, तुर्की, सीरिया, अफगानिस्तान, सऊदी अरब, पाकिस्तान जैसे मुल्क़ हाथ सेंकने को तैयार बैठे हैं।
ऐसे में भारत जैसे विशाल देश को आंतरिक असुरक्षा से निपटने के लिए अग्रिम रूप से सक्षम रहना ही चाहिए। ताकि देश और मानव प्रजाति के ख़िलाफ़ भावी षड्यंत्रों को यथासमय निर्मूल किया जा सके। आज जो हालात हैं वो परमाणु युद्ध से पहले जैविक और रासायनिक हमलों की आशंका उपजा रहे हैं। जिनके त्वरित विस्तार में आज़ादी के नाम र जारी निरंकुशता मददगार बन सकती है। आशा की जानी चाहिए कि वैश्विक घातों के मामले में भुक्तभोगी देश इस दिशा में विचार कर जल्द ही प्रभावी निर्णय लेगा। आज के सामयिक विचार का समापन इन चार निजी व मौलिक पंक्तियों के साथ-
“दोस्ती की कोशिशें जारी रखो,
दुश्मनों पे भी नज़र भारी रखो।
ठीक है हमला नहीं भाता तुम्हें,
बच सकें इतनी तो तैयारी रखो।।”
■प्रणय प्रभात■
श्योपुर (मध्यप्रदेश)