ग़ज़ल _ मिले जब भी यारों , तो हँसते रहे हैं,
विषय-तिरंगे में लिपटा शहीद।
आधा ही सही, कुछ वक्त तो हमनें भी गुजारा है,
अपनी ही हथेलियों से रोकी हैं चीख़ें मैंने
मंजिलों की तलाश में, रास्ते तक खो जाते हैं,
*हर मरीज के भीतर समझो, बसे हुए भगवान हैं (गीत)*
दुनिया की हर वोली भाषा को मेरा नमस्कार 🙏🎉
आपसे कोई लड़की मोहब्बत नही करती बल्की अपने अंदर अंतर्निहित व
देखिए लोग धोखा गलत इंसान से खाते हैं
हमने किस्मत से आंखें लड़ाई मगर