■ छठ महापर्व…।।
#विशेष_दोहा_व_आलेख
■ मां का परिचय और पर्व का वैशिष्ट्य
★ सात समंदर पार लोक संस्कृति की धमक
【प्रणय प्रभात】
“अपने भक्तों पर सदा,
अनत कृपा बरसाए।
रवि-अनुजा कात्यायिनी,
छठ माता कहलाए।।
सर्वविदित है कि जगत-जननी मां दुर्गा के नौ स्वरूप हैं। जिनमें छठे क्रम पर विराजित होने के कारण मां कात्यायिनी को ही “छठ माता” कहा जाता है। मान्यता है कि छठ माता सृष्टि की अनंत ऊर्जा के भंडार भगवान सूर्य देव की बहिन हैं। जिनकी विशेष उपासना का केंद्र कभी भारत का पूर्वांचल था। आज समूचा देश नहीं संसार है। क्योंकि दुनिया मे हर जगह भारत है। यूपी है, बिहार है। इसलिए छठ माता की सर्वत्र जय-जयकार है। छठ महापर्व अस्ताचल-गामी सूर्य नारायण की उपासना का भी अनूठा पर्व है। जिसे उनकी अपार कृपा के प्रति कृतज्ञता की पुनीत अभिव्यक्ति भी माना जा सकता है।
पर्व से जुड़े आस्था के भावों की परिचायक हैं वो रीतियां, जो विहंगम होने के बाद भी आसान नहीं हैं। पहले दिन स्नानादि से निवृत हो कर “नहाए-खाए” की रस्म का निर्वाह करना और फिर डेढ़ दिवस (36 घण्टे) के लिए निर्जल-निराहार उपवास का जटिल संकल्प लेना भक्ति-भाव का अद्भुत उदाहरण है। पर्व का समापन चौथे व अंतिम दिन अस्त होते सूर्यदेवता को अर्ध्य देकर किया जाता है। जो आज कार्तिक शुक्ल षष्टी को छठ माता के विधि-विधान से पूजन के बाद जलाशयों के सजे-धजे तट पर किया जाएगा। जिसकी धूम आज भारत ही नहीं सात समंदर पार भी होगी। जो सनातन संस्कृति के चिरंतन व सार्वभौमिक होने का सच प्रमाणित करेगी। अपनी शैली में कहूँ तो चरितार्थ होंगी मेरी यह चार पंक्तियां :-
“दे रहा जगती को धड़कन,
सत्य शश्वत है सनातन।
किसलिए नश्वर कहें हम,
वो, जिसे कहते हैं जीवन?
मृत्यु-रूपी वेग में भी,
ना बहा है ना बहेगा।
आज है कल भी रहेगा।।”
छठ पूजा की सामग्री की जानकारी के बिना सारा आलेख अधूरा सा रहेगा। इसलिए बात करते हैं उन चीजों की जिनके बिना यह पूजा सम्भव नहीं। महिलाओं के लिए नई साड़ी सहित हरे (कच्चे) बांस की दो बड़ी-बड़ी टोकरियां और सूप, दूध और जल के लिए एक पात्र, लोटा, थाली, चम्मच, पांच गन्ने (पत्ते लगे हुए), शकरकंद, ऋतुफल सुथनी पान, सुपारी और हल्दी इस पर्व में पूजा के लिए अनिवार्यत: प्रयुक्त होती है। जो छठ के दिन हर हाथ में दिखाई देती है। आज भी दिखाई देगी।
हर तरह का भेद-भाव मिटा कर मानव को मानव से जोड़ना इस महापर्व की विशेषता है। जिसका प्रमाण छठ-पूजा के लिए उमड़ता जन-सैलाब स्वयं देता है। एक आस्थावान को अपनी मिट्टी व अपनी संस्कृति के साथ सरसता से जोड़ना भी इस पर्व की महत्ता है। कामना पति, संतान व परिवार की कुशलता की होती है। इस भावना को मुखर करते सुरीले लोकगीत महापर्व को रसमय बनाते हैं, इसमें कोई संशय किसी को नहीं।
आस्था और उमंग से परिपूर्ण चार दिवसीय छठ महापर्व के पावन अवसर पर सभी भक्तों व श्रद्धालुओं के प्रति आत्मीय मंगलकामनाएं। निजी, मौलिक व स्वरचित इन पंक्तियों के साथ :-
“सप्त अश्व से युक्त रथ,
रुके आपके द्वार।।
रत्न-जड़ित रथ पर रहें,
दिनकर स्वयम् सवार।।
दिनकर स्वयम् सवार,
ऊर्जा दें जन-जन को।
छठ-पूजन का पर्व करे,
उल्लासित मन को।।
छठ-माता सब पर कृपा,
बरसाऐं दिन-रात।
यही हृदय से कामना,
करता प्रणय प्रभात।।”
■प्रणय प्रभात■
●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)