■ ग़ज़ल (वीक एंड स्पेशल) –
#ग़ज़ल-
■ ग़लत रस्ता किसी को क्यूं बताना??
【प्रणय प्रभात】
● लिए बैठा है ख़ुद अपना ख़ज़ाना।
किसी ग़मगीन को ग़म क्या सुनाना।।
● मज़े बारिश के लेता है ज़माना।
जहां तक हो सके आंसू छुपाना।।
● कोई साये में मेंरे सो रहा है।
मुझे है धूप से रिश्ता निभाना।।
● भुला देने का नाटक कर रहा है।
उसे कुछ भूल के भी मत बताना।।
● वो कदमों में रहे तो ही सही है।
मुसीबत को भी क्या सर पे बिठाना??
● ज़माने में भलाई ख़ूब ढूंढो।
कभी मिल जाए तो मुझको बताना।।
● कभी होंना ही है मुझसे मुख़ातिब।
अभी से सोच के रखिए बहाना।।
● कोई मंज़िल नहीं जागीर अपनी।
ग़लत रस्ता किसी को क्यूं बताना??
● हमारा दिल ख़ुदारा तोड़िए मत।
हज़ारों दर्द का है इक ठिकाना।।
● जिसे बेआसरा तुम कर गए थे।
पनाहों में ग़ज़ल की है फ़साना।।
● जहां बतियाए अरसे तलक हम।
महकता है गली का वो मुहाना।।
● खड़ी थी बेड़ियां लेकर के सरहद।
मुझे भाया हदों से पार जाना।।
■प्रणय प्रभात■
●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)