■ ग़ज़ल / मोल है साहब!!
■ ग़ज़ल / मोल है साहब!!
【प्रणय प्रभात】
★ सिर्फ़ साँसों का मोल है साहब!
जिस्म मिट्टी कि खोल है साहब!!
★ ये जो दुनिया है इक थिएटर है।
इसमें हम सबका रोल है साहब!!
★ हम सभी वक़्त के निशाने पर।
हाथ उस के गुलेल है साहब!!
★ भाँपता है वजन निगाहों से।
ये तजुरबे का तोल है साहब!!
★ गूँज आवाज़ की बताती है।
ढोल भीतर भी पोल है साहब!!
★ दिल में कुछ है दिमाग़ में कुछ है।
उसके लहज़े में झोल है साहब!!
【प्रणय प्रभात】