■ ख़ुद की निगरानी
■ दौर_बदलाव_का
और कुछ बदला हो, न बदला हो। इंसान ज़रूर बदल रहा है। हर दिन अपनी जरूरत के हिसाब से। तमाम तो इतना बदले कि अपनी मूल पहचान (मानवता) ही भूल गए। देखें, कहीं आप भी तो नहीं उनमें…?
【प्रणय प्रभात】
■ दौर_बदलाव_का
और कुछ बदला हो, न बदला हो। इंसान ज़रूर बदल रहा है। हर दिन अपनी जरूरत के हिसाब से। तमाम तो इतना बदले कि अपनी मूल पहचान (मानवता) ही भूल गए। देखें, कहीं आप भी तो नहीं उनमें…?
【प्रणय प्रभात】