जब तुम हारने लग जाना,तो ध्यान करना कि,
*प्रश्नोत्तर अज्ञानी की कलम*
किसी को इतना भी प्यार मत करो की उसके बिना जीना मुश्किल हो जा
फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन
स्वयं का न उपहास करो तुम , स्वाभिमान की राह वरो तुम
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
ए दिल्ली शहर तेरी फिजा होती है क्यूँ
*करता है मस्तिष्क ही, जग में सारे काम (कुंडलिया)*
इस क़दर उलझा हुआ हूं अपनी तकदीर से,
संघर्ष की राहों पर जो चलता है,
बहुत दिनों के बाद मिले हैं हम दोनों
*छाया कैसा नशा है कैसा ये जादू*