Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
22 Jan 2023 · 3 min read

■ कीजिएगा विचार…!!

■ “तंत्र” आख़िर किसका…?
★ “जन” का या फिर “गण” का…?
【प्रणय प्रभात】
“जनतंत्र” यानि “जनता पर जनता के लिए जनता द्वारा किया जाने वाला शासन।”
यही परिभाषा बचपन से पढ़ते आए थे। इस परिभाषा के शब्द और अर्थ कब बदल गए, पता ही नहीं चला। मात्र एक शब्द ने न केवल सारी परिभाषा बदल दी, बल्कि “जनतंत्र” को “गणतंत्र” कर सारे मायने ही बदल डाले। ऐसा अपने आप हुआ या “तंत्र” की खोपड़ी में घुसे “षड्यंत्र” से, यह अलग से शोध का विषय है।
जो कहना चाहता हूँ, उसे बारीक़ी से समझने का प्रयास करें। संभव है कि जो खिन्नता मेरे मन मे उत्पन्न हुई है, वो आपके मन मे भी हो। तब शायद यह एक बड़ा सवाल सभी के दिमाग़ में कुलबुला सके कि “आख़िर क्या किया जाए उस गणतंत्र का…जो अपने लिए है ही नहीं…?”
आप माने या न माने मगर सच वही है जहां तक मेरी सोच पहुंच पाई है। हमारे देश में “जनतंत्र” अब बचा ही नहीं है। उसे तो कुटिल सत्ता-सुंदरी ने कपटी सियासत के साथ मिली-भगत कर “गणतंत्र” बना दिया है। जिसमें समूचा तंत्र “जन” नहीं “गण” के कब्ज़े में नज़र आता है।
“गण” अर्थात “दरबारी”, जिन्हें हम मंत्री या सभासद आदि भी कह सकते हैं। जो “जन” और “गण” को एक मानने की भूल बीते 73 साल (सन 1950) से करते आ रहे हैं, अपना मुग़ालता दूर कर लें। जन और गण दोनों अलग हैं। यदि नहीं होते तो गुरुदेव टैगोर राष्ट्रगीत में दोनों शब्दों का उपयोग क्यों करते?
स्पष्ट है कि अंतर “आम आदमी” और “ख़ास आदमी” वाला है। आम वो जो भाग्य-विधाता चुनने के लिए चार दिन के भगवान बनते हैं। ख़ास वो, जो एक बार चुन लिए जाने के बाद सालों-साल देश की छाती पर मनमानी की मूंग दलते हैं। जिसके हलवे का स्वाद उनकी पीढियां जलवे के साथ लेती हैं। थोड़ा सा तलवे सहलाने और सूंघने, चाटने वाले भी।
कोई महानुभाव इस तार्किक विवेचना और निष्कर्ष से इतर कुछ समझ सके तो मुझ अल्पज्ञ को ज़रूर समझाए। बस ज़रा संयम और मर्यादा के साथ। वो भी 26 जनवरी से पहले, ताकि उत्सव मनाने या न मनाने का निर्णय एक आम नागरिक की हैसियत से ले सकूं और उस शर्मिंदगी से बच सकूं जो हर साल राष्ट्रीय पर्व के आयोजन को देख कर संवेदनशील मन में उपजती है। रेड कार्पेट से गुज़र कर नर्म-मुलायम सोफों और कुर्सियों पर विराजमान “गणों” व भीड़ का हिस्सा बन धक्के खा कर मैदान में बंधी रस्सियों के पार खड़े “जनों” को देख कर। कथित उत्सव की विकृति और विसंगति, जो आज़ादी के अमृत-काल में भी अजर-अमर नज़र आनी तय है।
वर्दी की बेदर्दी के चलते नज़रों को चुभने वाले पारंपरिक नज़ारों को मन मसोस कर देखना नियति क्यों माना जाए…? तथाकथित प्रोटोकॉल के नाम पर अघोषित “आसमान नागरिक संहिता” को ग़ैरत रहन रख कर क्यों सहन किया जाए…? प्रतीक्षा करें देश मे निर्वाचित “गणतंत्र” की जगह निर्वासित “जनतंत्र” के “राज्याभिषेक” की। जो एक राष्ट्रीय महापर्व को समानता व समरसता के मनोरम परिदृश्य दे सके। तब तक टेलिविज़न और चैनल्स हैं ही, सम्नांन से घर बैठ कर मनोरंजन करने के लिए। रहा सवाल आत्म-गौरव की अनुभूति का, तो उसके लिए अपना एक “भारतीय” होना ही पर्याप्त है। बिना किसी प्रदर्शन या पाखण्ड के।।
जय हिंद, वंदे मातरम।।

1 Like · 257 Views

You may also like these posts

अपने सनातन भारतीय दर्शनशास्त्र के महत्त्व को समझें
अपने सनातन भारतीय दर्शनशास्त्र के महत्त्व को समझें
Acharya Shilak Ram
प्रेम के पल
प्रेम के पल
Arvind trivedi
Experience Life
Experience Life
Saransh Singh 'Priyam'
"UG की महिमा"
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
कुंडलिया
कुंडलिया
sushil sarna
लगाओ पता इसमें दोष है किसका
लगाओ पता इसमें दोष है किसका
gurudeenverma198
घर घर दीवाली
घर घर दीवाली
इंजी. संजय श्रीवास्तव
ग़ज़ल _ थी पुरानी सी जो मटकी ,वो न फूटी होती ,
ग़ज़ल _ थी पुरानी सी जो मटकी ,वो न फूटी होती ,
Neelofar Khan
परिवार
परिवार
Shashi Mahajan
The Misfit...
The Misfit...
R. H. SRIDEVI
जीवन का सार
जीवन का सार
विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’
ईश्क वाली दोस्तीं
ईश्क वाली दोस्तीं
Sonu sugandh
कृष्णा बनकर कान्हा आये
कृष्णा बनकर कान्हा आये
Mahesh Tiwari 'Ayan'
ग़ज़ल
ग़ज़ल
Deepesh Dwivedi
सारे जग को मानवता का पाठ पढ़ाकर चले गए...
सारे जग को मानवता का पाठ पढ़ाकर चले गए...
Sunil Suman
"आभाष"
Dr. Kishan tandon kranti
अनर्गल गीत नहीं गाती हूं!
अनर्गल गीत नहीं गाती हूं!
Mukta Rashmi
तुम भी सर उठा के जी सकते हो दुनिया में
तुम भी सर उठा के जी सकते हो दुनिया में
Ranjeet kumar patre
नाम मौहब्बत का लेकर मेरी
नाम मौहब्बत का लेकर मेरी
Phool gufran
कोहली किंग
कोहली किंग
पूर्वार्थ
“ सर्पराज ” सूबेदार छुछुंदर से नाराज “( व्यंगयात्मक अभिव्यक्ति )
“ सर्पराज ” सूबेदार छुछुंदर से नाराज “( व्यंगयात्मक अभिव्यक्ति )
DrLakshman Jha Parimal
रिश्तों का सच
रिश्तों का सच
भवानी सिंह धानका 'भूधर'
रिश्ता है या बंधन
रिश्ता है या बंधन
Chitra Bisht
शायरी
शायरी
गुमनाम 'बाबा'
23/58.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
23/58.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
मैं पुलिंदा हूं इंसानियत का
मैं पुलिंदा हूं इंसानियत का
प्रेमदास वसु सुरेखा
गांव
गांव
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
सफलता और असफलता के बीच आत्मछवि- रविकेश झा
सफलता और असफलता के बीच आत्मछवि- रविकेश झा
Ravikesh Jha
लड़की की कहानी पार्ट 1
लड़की की कहानी पार्ट 1
MEENU SHARMA
जीवन एक मैराथन है ।
जीवन एक मैराथन है ।
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
Loading...