■ क़तआ / मुक्तक
■ आज_के_अशआर :-
“ना ऊंच-नीच से मतलब, ना हश्र की चिंता,
उधर चलेगी हवा जिस तरफ़ को बहती है !
ज़रा सी ढील मिली और खा गई झोंका !
पतंग डोर से बंध कर के कहाँ रहती है ?”
【प्रणय प्रभात】
■ आज_के_अशआर :-
“ना ऊंच-नीच से मतलब, ना हश्र की चिंता,
उधर चलेगी हवा जिस तरफ़ को बहती है !
ज़रा सी ढील मिली और खा गई झोंका !
पतंग डोर से बंध कर के कहाँ रहती है ?”
【प्रणय प्रभात】