■ एक_और_बरसी…
#एक_और_बरसी…!
■ ज़रा, याद करो कुर्बानी।।
【प्रणय प्रभात】
वर्ष 2016 में आज ही के दिन 1000 और 500 रुपए के नोट अकाल-मृत्यु के शिकार हुए थे। आज बेचारों की सातवीं पुण्यतिथि है। तरस आता है 1000 रुपए के नोट पर, जिसका वंश ही समाप्त हो गया। निस्संतान जो मारा गया बेचारा। राहत की बात बस इतनी है कि 500 के नोट की नई पीढ़ी फिलहाल ज़िंदा है। जिसने अपने बाप (हज़ारी) के बाद अकस्मात प्रकट हुए दूर के दादा (दुई हज़ारी) को दम तोड़ते देखा है। कुछ ही दिनों पहले। बहरहाल, दोनों निरीहो को कृतज्ञ राष्ट्र की ओर से भावपूरित श्रद्धांजलि।
तीसरे (2000) की भ्रूण-हत्या पर कोई तकलीफ़ नहीं, मगर दोनों की कुर्बानी भुलाए नहीं भूलती। वजह है उनकी मौत की वजह का साफ़ न होना। किससे करें शिकायत और किससे करें गिला…? मगर सच्चाई यही है कि दोनों के अकारण दिवंगत होने से किसी को कुछ भी नहीं मिला। न देश को, न देश वासियों को। कैश के खेल में ऐश तमामों के हुए, इतना ज़रूर पता है। जो काला था वो आज सफेद है। वैसे भी दोनों में क्या भेद है…?? बोलो ऊं शांति।।
■प्रणय प्रभात■
●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)