भारत का ’मुख्यधारा’ का मीडिया मूलतः मनुऔलादी है।
इन आँखों में इतनी सी नमी रह गई।
"" *एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य* "" ( *वसुधैव कुटुंबकम्* )
खुले आम जो देश को लूटते हैं।
मिट जाए हर फ़र्क जब अज़ल और हयात में
इंसान को इतना पाखंड भी नहीं करना चाहिए कि आने वाली पीढ़ी उसे
सांझ सुहानी मोती गार्डन की
किसी की छोटी-छोटी बातों को भी,
नीलामी हो गई अब इश्क़ के बाज़ार में मेरी ।
स्वीकार्यता समर्पण से ही संभव है, और यदि आप नाटक कर रहे हैं
चीर हरण ही सोचते,
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali