■ एक प्रयास…विश्वास भरा
#नई_कविता
■ अपनी हद में…
【प्रणय प्रभात】
– उड़ो,
जितना दिल चाहे।
मगर देख लो,
टकरा न जाओ किसी से।
उड़ान पर तुम्हारा नहीं,
औरों का भी हक़ है।।
– बहो,
जहां तक बहना चाहो।
मगर भांप लो,
कोई चट्टान तो नहीं राह में।
अल्हड़ नदी पर आख़िर,
पानी का ही तो हक़ नहीं।।
– रहो,
जब तक मन करे।
मगर याद रहे,
तुमसे पहले कोई था।
तुम्हारे बाद भी कोई होगा।
क्योंकि,
ये दुनिया घर नहीं, सराय है।।
#प्रभात_प्रणय
■ आत्म-कथ्य…
(क्षमा कीजियेगा ज्ञात-अज्ञात त्रुटियों के लिए। नई कविता मूलतः मेरी स्वाभाविक व सहज विधा नहीं है। इस दिशा में हर प्रयास बझ एक प्रयास है। वो भी आस नहीं, विश्वास के साथ)