■ एक आलेख : भर्राशाही के खिलाफ
■ मध्यप्रदेश में…
भारी पड़ सकती है “लूट की छूट”
★ नंगई व दबंगई पर आमादा है बिजली कम्पनी
★ गिरोह की तरह बर्ताव कर रहा है मैदानी अमला
★ आंकलित खपत के साथ अधिभार की भी चपत
★ लूटखसोट व अपमान से आहत है जनता जनार्दन
★ बेनागा झटकों के बदले दे सकती है तगड़ा झटका
【प्रणय प्रभात】
जहां एक ओर सस्ती और मुफ्त बिजली देकर आम आदमी पार्टी अपना जनाधार बढ़ाती जा रबी है। वहीं दूसरी ओर भाजपा शासित मध्यप्रदेश में बिजली के झटके आम आदमी को बेनागा लग रहे हैं। येन-केन-प्रकारेण सत्ता पर काबिज़ होती आ रही भाजपा सत्ता-मद में चूर है। जिसका लाभ कांग्रेस शासित दिग्गी सरकार का फ़ट्टा बिठा चुकी बिजली कम्पनी उठा रही है। ऐसा लग रहा है मानो कम्पनी बहादुरों और उनके कारिंदों को “लूट की छूट” मिल गई हो। आलम यह है कम्पनी के मैदानी अमले ने नंगई व दबंगई के अपने ही कीर्तिमान ध्वस्त करने का बीड़ा उठा लिया है। जो आम जनता को हरसंभव तरीके से लूटने व अपमानित करने में प्राण-पण से जुटा हुआ है। ऐसे में प्रदेश के ऊर्जा मंत्री की अपने विभाग के ढर्रे व जनता की फजीहत के प्रति उदासीनता विडम्बना की बात है। मंत्री महोदय का ध्यान सुर्खियों में लाने वाले कामों में तो है, मगर उन सुर्खियों पर नहीं जो कम्पनों के कारिंदों की करतूतों के तौर पर आए दिन उजागर हो रही है। हर दिन किसी न किसी आयोजन और अनुत्पादक योजना के नाम पर घोषणाओं के बलबूते 2023 की जंग जीतने का खुमार सत्ता से संगठन तक के सिर पर सवार है। सरकार और संगठम को शायद इस बात का इल्म नहीं है कि चौतरफा लूट से आज़िज़ आ चुकी जनता इस बार के चुनाव में उसकी लू उतार सकती है। जिसकी एक वजह बिजली कम्पनी बनेगी।
बिना मीटर रीडिंग आंकलित खपत के आधार पर भारी-भरकम बिल बनाए जा रहे हैं। हर महीने समय से बिल वितरण की कोई व्यवस्था नहीं है। जिसकी वजह से या तो उपभोक्ताओं पर लंबे-चौड़े बिल की एकमुश्त अदायगी का बोझ बढ़ जाता है, या उन्हें जबरन वो अधिभार चुकाना पड़ता है जिसके लिए कम्पनी ज़िम्मेदार है। रसूखदार उपभोक्ताओं के बिल सुपरवाइजर या रीडर के साथ सांठ-गांठ के चलते सैकड़ों में आ रहे हैं। वहीं आम उपभोक्ताओं को थोपी गई मनमानी खपत के कारण हज़ारों का भुगतान करने पर मजबूर होना पड़ रहा है। दिन-रात एसी और हीटर सहित घण्टों बोरवेल और वाटर पम्प चलाने वाले मामूली चढ़ावा चढ़ा कर मज़े लूट रहे हैं। जबकि ऊर्जा के सदुपयोग व बचत की भावना रखने वाले सामान्य उपभोक्ताओं को लगातार चपत लगती आ रही है।
ऊपर से मिले कथित आदेश का हवाला देकर वसूली का फंडा गैंग की तरह अमल में लाया जा रहा है। महीने के अंतिम सप्ताह में नसैनी (सीढी) लेकर बिजली काटने की धमकी देने के नजारे आम बात बने हुए हैं। वसूली दल की अगुवाई करने वाले जूनियर इंजीनियर व अमले के सदस्य आम परिवार की उन महिलाओं के साथ भी अभद्रता से बाज़ नहीं आते, जिनके भाई होने का दावा प्रदेश के मुखिया हर दिन ताल ठोक कर करते हैं। दूसरी ओर जरायमपेशा और असामाजिक लोगों की बस्तियों में जाने का हौसला अमले के पास नहीं है। जहां धड़ल्ले से बिजली चुराई व उपयोग में लाई जा रही है। चोरों के उपयोग में खपने वाली बिजली के दामों की भरपाई मैदानी दल ने खेल बना रखा है। जिसे आला अफसरों का खुला संरक्षण हासिल है।
ऐसे में यदि पीड़ित व अपमानित आम आदमी “आप” का दामन थाम ले तो कोई ताज्जुब नहीं किया जाना चाहिए। पिछले चुनाव में मिले जनादेश की प्रतिकूलता के बावजूद सत्ता के गलियारे में लौटी भाजपा ने हिमाचल और दिल्ली की हार से भी शायद कोई सबक़ नहीं लिया है। जनहित से जुड़े ठोस मुद्दों को ताक में रखकर हवा-हवाई वादों और दावों पर निर्भर भाजपा को समय रहते आम जन की आवाज़ कान खोल कर सुननी होगी। अन्यथा इस बार के नतीजे चौंकाने वाले होंगे।
बेहतर होगा कि मुख्यमंत्री बिजली कम्पनी के ढर्रों को सुधारने की दिशा में अपने स्तर पर कारगर पहल करें। प्रदेश में हर माह मीटर रीडिंग के स्पष्ट निर्देश जारी हों। वास्तविक खपत के आधार पर बिल पहले सप्ताह के अंत से पहले घरों तक पहुंचाना सुनिश्चित हो। भुगतान के लिए कम से कम 10 दिन का समय दिया जाए। उसके बाद मासांत तक सामान्य अधिभार के साथ राशि जमा कराने का प्रावधान हो। मैदानी अमले को गिरोह जैसे बर्ताव से बाज़ आने की हिदायत दी जाए। शौचालयों व नालों की सफाई का काम नगर निकाय को सौंप कर ऊर्जा मंत्री अपने विभागीय दायित्व के प्रति जागरूक हो सकें तो और बेहतर होगा। नहीं भूला जाना चाहिए कि चंद दिनों बाद शुरू होने वाला नया साल चुनावी है। जिसमे सरकार की नाव की पतवार आम जनता को ही थामना है। उसी आम जनता को जिसका कोई भी वर्ग फिलहाल संतुष्ट नहीं है। ऐसे में भाजपा को विपक्ष में बैठाने के लिए उभर रहे विकल्प की बल्ले-बल्ले हो सकती है। अब यह भविष्य ही तय करेगा कि भाजपा सरकार समय रहते अपने मुगालतों को दूर करने में कामयाब होती है या लूट को छूट के माहौल से बेपरवाह बने रह कर जनता की अदालत में खामियाजा भुगतती है?