■ आस्था की अनुभूति…
■ क्या काम कनक से…?
【प्रणय प्रभात】
कनक की खनक ना कनक का ख़ुमार,
कनक की ज़रूरत नहीं अब है यार??
कनक के बिना ही चमक बरक़रार।
कनक भूधराकार हम पर उदार।।
जी हां, वही “कनक।” जिसके दो अर्थ सोना और धतूरा एक दोहे के माध्यम से “श्लेष” अलंकार का सर्वाधिक प्रचलित केंद्र बने। यहां मामला एक पग आगे का है। कनक का एक अर्थ “गेंहू” भी होता है और इन तीनों कनक की हम जैसे जीवों को क्या आवश्यकता? हमारे साथ कनक के पर्वताकार स्वरूप श्री हनुमान जी महाराज स्वयं सूक्ष्म रूप में बने हुए हैं। परम-सदगुरुदेव भगवान के स्वरूप में। जय राम जी की।।
■प्रणय प्रभात■