वक्त सबको पहचानने की काबिलियत देता है,
ग़ज़ल : उसने देखा मुझको तो कुण्डी लगानी छोड़ दी
गिराता और को हँसकर गिरेगा वो यहाँ रोकर
( सब कुछ बदलने की चाह में जब कुछ भी बदला ना जा सके , तब हाला
सोरठौ
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
कैसे-कैसे दाँव छल ,रखे दिलों में पाल
व्यक्ति को ख्वाब भी वैसे ही आते है जैसे उनके ख्यालात होते है
🙏 गुरु चरणों की धूल 🙏
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
तेरी तसवीर को दिल में बसा रखा है
महिला दिवस विशेष -कारण हम आप हैं
और कितना तू रोएगी जिंदगी ..
मुज़रिम सी खड़ी बेपनाह प्यार में
प्रकृति! तेरे हैं अथाह उपकार
■ बिल्ली लड़ाओ, रोटी खाओ अभियान जारी।