कंधे पे अपने मेरा सर रहने दीजिए
विचार
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
*मुंडी लिपि : बहीखातों की प्राचीन लिपि*
मायड़ भासा मावड़ी, परथमी पर पिछांण।
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
मेरे जज्बात जुबां तक तो जरा आने दे
लोग एक दूसरे को परखने में इतने व्यस्त हुए
अगर हमारा सुख शान्ति का आधार पदार्थगत है
वो आइने भी हर रोज़ उसके तसव्वुर में खोए रहते हैं,
जाने ऐसा क्यों होता है ? ...
जो प्राप्त है वो पर्याप्त है
*परिमल पंचपदी--- नवीन विधा*
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
मतलब हम औरों से मतलब, ज्यादा नहीं रखते हैं
रेशम के धागे में बंधता प्यार