पानी की तरह प्रेम भी निशुल्क होते हुए भी
पेड़ों की छाया और बुजुर्गों का साया
स्वयं को संत कहते हैं,किया धन खूब संचित है। बने रहबर वो' दुनिया के
अटल मुरादाबादी(ओज व व्यंग्य )
आप अपनी नज़र फेर ले ,मुझे गम नहीं ना मलाल है !
सोभा मरूधर री
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
कई खयालों में...!
singh kunwar sarvendra vikram
"सूखे सावन" का वास्ता सिर्फ़ और सिर्फ़ "अंधों" से ही होता है।
D. M. कलेक्टर बन जा बेटा
Shyamsingh Lodhi Rajput "Tejpuriya"
ग़ज़ल(नाम तेरा रेत पर लिखते लिखाते रह गये)
कभी कभी कहना अच्छा होता है