■ आज का ज्ञान…
■ एक अद्भुत प्रजाति…
औरों के काम, नाम, दाम सबसे जलने-भुनने वालों की आबादी तेज़ी से बढ़ रही है। ख़ुद से कुछ होता नहीं और दूसरों का किया सुहाता नहीं। रात-दिन कसमसाने, कुड़कूड़ाना, भुनभुनाना इनकी ख़ासियत मानी जाती है। हर आदमी के आसपास ऐसे लोगों की औसत संख्या कम से कम दो-ढाई सौ होती है। जबकि अधिकतम लाखों नहीं करोड़ों में। जो सामने वाले का तख्ता अपनी आहों से हिलाए बिना नहीं मानते। आप भी तलाशें अपने आसपास।।
【प्रणय प्रभात】