■ आज का चिंतन
■ मर्म और मन्तव्य
【प्रणय प्रभात】
लघु का मूल्य लघु ही अच्छी तरह समझ सकता है। महत्व का आंकलन आवश्यकता और उपादेयता के बिना संभव नहीं। भूला नहीं जाना चाहिए कि जिसे तरह लघु के लिए गुरु आवश्यक है, उसी तरह गुरु के लिए भी लघु का अपना महत्व है। दोनों परस्पर विलोम होने के बाद भी एक दूसरे के पूरक हैं और यही सह-अस्तित्व है।