■सत्ता के लिए■
■सत्ता के लिए■
हरेक ख़्वाब को घायल बना के छोड़ेगा।
पता न था कि यूं पागल बना के छोड़ेगा।।
चाह में तख़्त तो ख़्वाबों में ताज है उसके।
तमाम मुल्क़ को मक़तल बना के छोडगा।।
◆प्रणय प्रभात◆
■सत्ता के लिए■
हरेक ख़्वाब को घायल बना के छोड़ेगा।
पता न था कि यूं पागल बना के छोड़ेगा।।
चाह में तख़्त तो ख़्वाबों में ताज है उसके।
तमाम मुल्क़ को मक़तल बना के छोडगा।।
◆प्रणय प्रभात◆