■एक_ग़ज़ल_ऐसी_भी…
■ एक_ग़ज़ल_ऐसी_भी… 【प्रणय प्रभात】
■ कुछ तो ख़ूबी होगी प्यारे, भारत की अँगनाई में।
ऊँचे-ऊँचे दबे पड़े हैं, मिट्टी की गहराई में।।
■ मैं बिस्मिल्ला बोल के भाई, रामायण भी पढ़ देता।
काश तुझे दिलचस्पी होती, तुलसी की चौपाई में।।
■ हमने ऐसे-ऐसे मंज़र, देखे हैं दिखलाए हैं।
बीनाई तक शर्मसार है, ख़ुद अपनी बीनाई में।।
■ रहबर वाले चोगे पर ख़ुद, दाग़ लगा के कालिख़ का।
लुत्फ़ ले रहे बूढ़े शातिर, देखो छुपम-छुपाई में।।
■ जो उधेड़ डाले हैं रिश्ते, उनकी कुछ परवाह करो।
दौर कड़ा सब को समझाता, लग जाओ तुरपाई में।।
■ महफ़िल में कहता तो तुमको, लगता इज़्ज़त उतर गई।
यही सोचकर समझाता हूँ, आज तुम्हें तन्हाई में।।
■संपादक/न्यूज़ & व्यूज़■
श्योपुर (मध्यप्रदेश)