≈≈≈ जैहिंद के छ: दोहे ≈≈≈
जैहिंद के छ: दोहे
// दिनेश एल० “जैहिंद”
दोऊ स्तम्भ राम-किसन, भारत की हैं शान ।
हमरी कामना तो इहै, इन सदृश हों जवान ।।
मरदा के आगे हुआ, __ कब मेहरि का मोल ।
मरदा कबो नाहिं सुधरि, कतनो पिटबो ढोल ।।
पहिनकर सूट-बूट तू, बन जइबै का जोग ।
जबले ग्यान न होइहैं, _ गुन गइहैं का लोग ।।
प्रीत करै सब लोगवा, प्रीत बिना जग ठूँठ ।
प्रीत जे होइ राम से, _ शेष प्रीत सब झूठ ।।
प्रीत मधुर होवै बड़ा, प्रीत हरै सब क्लेस ।
प्रीत-प्रीत में भेद पर, भार्या, कुटुम्ब, देस ।।
प्रतापी राम नाम है, ___ राम नाम बड़ तेज़ ।
मरा-मरा भी राम हुआ, कर ना राम का तेज ।।
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दिनेश एल० “जैहिंद”
10. 10. 2017