√√टूटे मन के तार 【गीत 】
टूटे मन के तार 【गीत 】
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टूटे मन के तार ,कहो फागुन किस तरह मनाएँ
(1)
एक “निर्भया” नहीं देश में ,रोज हजारों रोतीं
दुष्ट-जनों की वे शिकार होकर प्राणों को खोतीं
नहीं बदलती हुई मानसिकता पुरुषों की पाते
अब भी वे दोषी महिलाओं को ही हैं ठहराते
नारी के हक में आओ बढ़कर माहौल बनाएँ
(2)
क्यों बलात्कारी की हिम्मत होती क्रूर न डरते
क्यों रूदन की ओर कदम नारी ही के हैं बढ़ते
क्यों घुट-घुट कर घर के भीतर-बाहर वह रह जाती
कहीं सुनाई चीख न उसकी थाने में है आती
सुनें वेदना उसकी ,सुनकर जग को तनिक सुनाएँ
(3)
रुकी हुई साँसें उसकी ही ,याद अभी भी आतीं
उसकी ही दुर्भाग्य-विवशताएँ हैं मन पर छातीं
कब उस पर अत्याचारों का क्रम यह कहो रुकेगा
कब मदांध पुरुषों का मस्तक कुछ तो कहो झुकेगा
अपराधी आजाद अभी भी ,हथकड़ियाँ पहनाएँ
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रचयिता : रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451