√√जीत का गणित( हास्य कविता )
जीत का गणित( हास्य कविता )
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नेताजी को सीट मिलेंगी यूँ तो केवल चार
लेकिन है उम्मीद बनेगी इनकी ही सरकार
(1)
ठर्रा बाँटा, कहीं-कहीं अंग्रेजी खूब पिलाई
पैर पड़े वोटर के, गर्दन सौ-सौ बार झुकाई
बोरी भर-भर नोट लुटाते, एक वोट के मारे
तहखाने से निकल रहे हैं दबे पड़े जो सारे
रुपया, पैसा और शराबें हैं इनके हथियार
(2)
इनका वादा तोड़ गगन से तारे सब लाएँगे
सौ-सौ तारे मुफ्त देश में घर- घर बँटवाएँगे
काम नहीं करना होगा घर पर बैठे ही खाएँ
एक बार बस यह प्रधानमंत्री केवल बन जाएँ
गली-गली में कल्पवृक्ष का इनका उच्चविचार
(3)
अरबों खरबों लूट- लूट कर है जागीर बनाई
दल का मतलब बेटा पत्नी साला साली भाई
धोखाधड़ी करो- करने दो नेता जी का नारा
कोर्ट- कचहरी की तारीखों में कटता दिन सारा
सत्ता की चाबी से शायद मुश्किल हो अब पार
नेताजी को सीट मिलेंगी यूँ तो केवल चार
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रचयिता: रवि प्रकाश,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 999761 5451