#२०८४
✍️
🟢 #२०८४ 🟢
अमेरिकी लेखक जॉर्ज ऑरवेल ने ईस्वी संवत् १९४८ में एक उपन्यास लिखा, #१९८४। तब तक दो विश्वयुद्ध(?) हो चुके थे। लेखक ने कल्पना की कि तीसरे विश्वयुद्ध के पश्चात १९८४ तक पूरा विश्व तीन देशों में बंट चुका होगा। जिसमें दो देश आपस में मित्र होंगे व तीसरा उनका सांझा शत्रु होगा। और, यह शत्रु व मित्र समय-समय पर बदलते रहेंगे।
लेखक की कल्पना केवल कल्पना ही रही क्योंकि कथा का मूल आधार ही सदोष था। जिसे प्रथम विश्वयुद्ध कहा जाता है, जो चार वर्ष चला, उसमेंं लगभग तीस देश ही सम्मिलित थे। और, तथाकथित द्वितीय विश्वयुद्ध में कुल सत्तर देशों ने भाग लिया। यह ठीक छह वर्ष चला। इसका समापन जापान के दो नगरों पर परमाणु बम गिराने से हुआ जिससे दोनों नगर वाष्प बनकर आकाश में विलीन हो गए।
इन पंक्तियों के लेखक को जॉर्ज ऑरवेल जैसी कल्पना करने की अनुमति मिले तो कहे कि इस समय रूस और यूक्रेन में जो संघर्ष चल रहा है यह इन दोनों देशों तक सीमित नहीं रहेगा। पूर्व के दोनों विश्वयुद्धों(?) की अपेक्षा जनधनहानि भी बहुत अधिक होने वाली है। विश्वमानचित्र पर बहुत-सी सीमारेखाएं मिट जाएंगी और कुछ नई रेखाएं खिंच भी जाएंगी। कुछ मतों अथवा मान्यताओं का समूल नाश हो जाएगा। और, अनुमान है कि यह युद्ध विक्रमी संवत् #२०८४ तक चलेगा।
लेकिन, तब भी यह विश्वयुद्ध न कहला सकेगा क्योंकि कुछेक देश असीम धैर्य का आलंबन न छोड़ेंगे।
लगभग छह हजार वर्ष पूर्व हुआ युद्ध जिसे महाभारत कहा जाता है, जो केवल अट्ठारह दिन (कुल अवधि अट्ठाईस दिन) चला। वही वास्तव में विश्वयुद्ध था। तब हुए भयंकर विनाश के प्रमाण आज भी विश्व में जहाँ-तहाँ बिखरे पड़े हैं। और, उसकी पुनरावृत्ति में अभी बहुत समय शेष है। जब वो ध्वंसोत्सव उपस्थित होगा तभी विश्वयुद्ध संज्ञा सार्थक होगी। तभी कलियुग की समाप्ति पर नवीन चतुर्युगी का शुभारंभ होगा।
इस लेख का आधार केवल ज्योतिषीय गणना नहीं है। जब चिरैया धूलिस्नान करने लगे तभी अनुभव बताया करता है कि अब मेंह बरसेगा। तब तक आप देश भारत के मेधावी यशस्वी नेतृत्व का अनुसरण करते हुए धीरज धरें। प्रभु श्रीराम कृपा करेंगे।
#वेदप्रकाश_लाम्बा
यमुनानगर (हरियाणा)
९४६६०-१७३१२