खुश रहोगे कि ना बेईमान बनो
सुकूं आता है,नहीं मुझको अब है संभलना ll
मेरी मजबूरी को बेवफाई का नाम न दे,
ग़ज़ल सगीर
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
आत्मविश्वास से लबरेज व्यक्ति के लिए आकाश की ऊंचाई नापना भी उ
गति साँसों की धीमी हुई, पर इंतज़ार की आस ना जाती है।
हो असत का नगर तो नगर छोड़ दो।
ये आँखें तेरे आने की उम्मीदें जोड़ती रहीं
मैं प्यार के सरोवर मे पतवार हो गया।
उस जैसा मोती पूरे समन्दर में नही है
नाम बदलने का था शौक इतना कि गधे का नाम बब्बर शेर रख दिया।
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
आजकल लोग बहुत निष्ठुर हो गए हैं,