मुझको जीने की सजा क्यूँ मिली है ऐ लोगों
ज़िंदगी के तजुर्बे खा गए बचपन मेरा,
ಅನಾವಶ್ಯಕವಾಗಿ ಅಳುವುದರಿಂದ ಏನು ಪ್ರಯೋಜನ?
हो हमारी या तुम्हारी चल रही है जिंदगी।
ज़िंदगी में कामयाबी ज़रूर मिलती है ,मगर जब आप सत्य राह चुने
बहुत दाम हो गए
ऐ./सी.राकेश देवडे़ बिरसावादी
सहसा यूं अचानक आंधियां उठती तो हैं अविरत,
*भाई और बहन का नाता, दुनिया में मधुर अनूठा है (राधेश्यामी छं
।।अथ श्री सत्यनारायण कथा तृतीय अध्याय।।
कान्हा को समर्पित गीतिका "मोर पखा सर पर सजे"
अटल मुरादाबादी(ओज व व्यंग्य )