।अनाचार दुराचार आओ रो के अत्याचार।
रे दुराचारी कैसा रूप बनाया, दुराचार करता जरा ना शरमाया।
रोती है उस् मां की अखियां, जिसने तुझे अपनी कोख से जाया।
बेटी थी वह बहन किसी की,घर उसके था मातम छाया।
हवस बुझाई तूने अपनी और फिर उसे जिंदा जलाया।।
अनाचार – दुराचार
आओ
रोके अत्याचार !!!
आज यह लेख लिखते हुए हमारी आंखें गीली है, समझ नहीं आ रहा है समाज में यह कैसी विकृति पनपती जा रही है।
किसे दोष लगाएं । इतना महानतम विशाल देश, जिसमें शांति भाईचारे समृद्धि की सरिता एं बहा करती थी, आज उसी देश में हर कहीं से कभी भी आना चाह अत्याचार दुराचार की दुर्गंध सुनाई देती है।
आखिर मानव का यह मन विकृत क्यों हुआ। इसकी तह में पहुंचने के लिए हमें गंभीर चिंतन करने की जरूरत है ।
आधुनिकता की दौड़ में पश्चिमी सभ्यता ने जब से भारतीय संस्कृति पर आक्रमण किया है तब से हमारा रहन सहन वेश परिवेश आचरण व्यवहार परिवर्तित होता जा रहा है ।
पश्चिमी सभ्यता के साथ-साथ आज की इस विकृति में नवीन आविष्कारों का भी बहुत कुछ योगदान है।
आज ऐसा कौन सा चलचित्र है जिसमें अश्लीलता बढ़ा चढ़ा कर नहीं परोसी जा रही है।
आज चाहे युवा तरुण के पास रोजगार नहीं है फिर भी उनके हाथों में ऐसे संसाधन आ गए हैं जिनके अंदर पहुंच कर बे अपने मन मस्तिष्क को भ्रमित कर रहे हैं और उसी का दुष्परिणाम मेरी दृष्टि में मुझे दिखाई देता है कि कहीं न कहीं उनकी मानसिक विक्रती को जन्म दे रहा है ।
इसका समाधान क्या है? इसकेलिए समाज के प्रत्येक तबके को एकता के सूत्र में बंधकर एक लंबे आंदोलन को जन्म देना पड़ेगा।
किसी घटित घटना पर 2-4-6 दिन टीवी में बहस करने से या एक-दो दिन कैंडल मार्च निकालने से इस समस्या का समाधान मुझे तो नहीं लगता कि हो पाएगा ।
जैसे हमने आजादी प्राप्त करने के लिए अंग्रेजो के खिलाफ विभिन्न आंदोलनों के माध्यम से सतत संघर्ष किया तब कहीं जाकर आज हम प्रजातंत्र में जी रहे हैं ठीक उसी प्रकार से यह जो समाज में एक अनाचार अत्याचार दुराचार की विकृति फैली है इसे देश से बाहर निकालने के लिए हमें निरंतर मिलकर साथ आकर इस पर गंभीरता पूर्वक कार्य करना पड़ेगा तब कहीं जाकर हम इस समस्या से निजात पा सकेंगे।
क्या बहन बेटियों का घर से अकेले बाहर जाना गुनाह है,अपराध
है । कदापि नहीं तो आखिर उस नारी शक्ति को क्यों अत्याचार की आग में जलना पड़ता है जिसने की पुरुष वर्ग को भी अपनी कोख से धरती पर उतारा है ।
हम लिख कर ही अगर अपना फर्ज मान लेंगे कि हमने इस पर लंबा चौड़ा लेख लिख दिया और समाज में परिवर्तन आ जाएगा नहीं नहीं इसके लिए तो एक जनक्रांति उत्पन्न करना पड़ेगी और वह जनक्रांति तब उत्पन्न होगी जब प्रबुद्ध नागरिक एक दूसरे से जुड़ कर के एक इस अत्याचार दुराचार के खिलाफ संगठन खड़ा करेगा।
हर गांव हर गली हर चौक, शहर दर शहर महानगर मैं उसी प्रकार का संगठन खड़ा करना पड़ेगा जैसे अलग-अलग विषयों के लिए लोग जुड़ करके अपना संगठन खड़ा करते हैं राजनीतिक दल किसान व्यापारी सभी का कहीं न कहीं अपना संगठन है उसी प्रकार अत्याचार अनाचार दुराचार के खिलाफ एक मजबूत संगठन खड़ा करके इस समस्या से निजात पाया जा सकता है तो आओ इस साहित्य पीडिया से जुड़े मेरे सम्मानित साथियों क्यों ना यह पहल इसी मंच के माध्यम से आप अपन सब मिलकर के करते हैं।
“”हम मिल जाएं संगठन एक बनाएं
धीरे-धीरे उसे आगे बढ़ाएं।
कारवां बढ़ता जाएगा ।
आपके हमारे जैसे और लोगों का
साथ मिल जाएगा।
नीव रखे मिलकर के हम
यह सिलसिला दूर तलक जाएगा ।
मेरे भारत देश में आज नहीं तो कल
आगे चलकर
एक दिन वह आएगा।
अनाचार दुराचार अत्याचार ,
समूल नष्ट हो जाएगा ।।
राजेश व्यास अनुनय