फ़ितऱत
पता नहीं क्यों लोग छोटी-छोटी बातों को तूल देकर बड़ा बना देते हैं । छोटी-छोटी गलतियों को बड़ा बनाकर प़ेश कर देते हैं । छोटी-छोटी गुस्ताख़ियों को बड़ा बना कर विवाद का स्वरूप दे देते हैं । शायद उनकी फ़ितऱत उन्हें ऐसा करने के लिए मज़बूर करती है । क्योंकि बिना किसी की बुराई के उनका वक्त गुजरता नहीं है । वे हमेशा इस फ़िराक में रहते हैं कि किसी की गलती को कैसे और कब पकड़ा जाए । उसे बढ़ा चढ़ा कर कैसे प़ेश किया जाए । उनको दूसरों की टांग खींचने से फुर्सत नहीं मिलती । क्योंकि उनके पास और कोई चर्चा का म़ुद्दा नहीं होता । इसलिए वे चर्चा के म़ुद्दे की तलाश में रहते हैं । उन्हें किसी के चरित्र हऩन् में बड़ा मज़ा आता है । और भी नमक मिर्ची लगा कर वे बात को प़ेश करने में म़ाहिर होते हैं । ऐसे लोगों का स्वयं का कोई ज़मीर नहीं होता है । ये लोग चंद पैसों के लिए इस तरह के कार्य करने के लिए तैयार हो जाते हैं । इस श्रेणी में वकील ,पत्रकार ,मीडिया वाले ,राजनीतिज्ञ और भटके हुए नौजवान , जो किसी विशेष लालच के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं शामिल हैं । कुछ फ़िरकाप़रस्त अपनी रोटी सेकने के लिए इस तरह के काम को अंजाम देते हैं । इनको बेइज्जत होने पर भी कोई फ़र्क नहीं पड़ता । और ये बदस्त़ूर अपने घटिया काम को जारी रखते हैं । लोगों के चारित्रिक हऩन् मे इस तरह के तत्वों की समाज में भरमार है । जिनके लिए अपने स्वार्थ पूर्ति के लिए किसी को भी प्रश्नों के कटघरे में खड़ा कर देना सर्वोपरि होता है । उन्हें इससे फर्क नहीं पड़ता कि उस व्यक्ति विशेष पर और उसके परिवार पर उनके कृत्य का क्या प्रभाव पड़ता है । उन्हें तो अपना उल्लू सीधा करने से मतलब है । इस प्रकार के तत्वों को राजनीतिक और प्रशासनिक संरक्षण भी मिलता देखा गया है । न्यायिक प्रक्रिया इतनी लचर है । कि सत्यमेव जयते यह कथन केवल नारा बन कर रह गया है । जिसमें सत्य की विजय केवल परिकल्पना मात्र बनकर रह गया है ।
सत्य पर काय़म व्यक्ति ग़वाहों के अभाव में सजा भुगत रहा है । जबकि झूठे ग़वाह प़ेश कर दोषी व्यक्ति छूट कर बेदाग़ घूम रहा है । अतः हम कह सकते हैं कि समाज की धमनियों में दूषित रक्त इतना प्रवाहित हो रहा है कि उसे शुद्ध करने के लिए हर एक स्तर पर सामाजिक अभियान चलाने की आवश्यकता है । जिसके लिए प्रबुद्ध वर्ग को आगे आकर पहल करनी पड़ेगी । वरना स्थिति बद से बदतर होती चली जाएगी ।