ज़िन्दगी
जिंदगी कुछ बिखरी बिखरी सी लगती है । लगता है यादों का कारवां जो पीछे छूट गया था अब तक जे़हन पर धुंधली यादों के सफ़र की श़क्ल में पा़बस्ता है । न जाने क्यों जाने पहचाने से चेहरे अब अन्जाने से लगते हैं । आईने में खुद को जब देखता हूं तो चेहरा भी अनजान सा लगने लगा है। शायद वक्त के दौर में सब कुछ तब्द़ील हो गया है। लगता है इंसानियत और ई़मान सिर्फ क़िताबी बातें रह गई हैं। सच और झूठ का फ़र्क करना बड़ा मुश्किल हो गया है । सच को झूठ और झूठ को सच बनाकर पेश किया जा रहा है। कानून के दोहरे मायने हो गए है । इंसाफ के तराजू में ज़र का पड़ला भारी है। मुफ़लिसों और मज़लूमों पर जु़ल्म किए जा रहे हैं सियासत चंद फ़िरकापऱस्तों और दहश़तगर्दों की जा़गीर बन चुकी है। हर कदम पर धोखे और तश़्द्दुत का मा़हौल है ।दीन की दुहाई देकर लूट खसोट करने वालों की पौ़बारह है । रिश्ते खुदगर्ज़ी में सिम़ट गए हैं । दोस्ती मौक़ापरस्तों की ज़मात बन चुकी है। मजहब के नाम पर लड़वाकर उल्लू सीधा करने वालों की कमी नही है। सरकारी महकमों में रिश्वतखोरी का बोलबाला है त़ालीमी इदारे तिज़ारती शोबे बन चुके हैं। हुऩर और फ़न की कोई क़द्र नहीं है। नीम हक़ीम अपनी दुकान चमका रहे है । इलाज के नाम पर मरीजों का खून चूसा जा रहा है। दवा के नाम पर ज़हर बेचा जा रहा है। दूसरों की अमानत पर नज़र डालने और कब्ज़ा करने वालों की भी कोई कमी नहीं है । वकालत ज़रायम पेशा बन चुका है । मुज़रिम खुलेआम घूम रहे हैं और बेगु़नाहों को फांसी पर लटका दिया जा रहा है । दानिश़मंदों की कमी म़हसूस की जा रही है। इमा़म के चोले मे छुपे फ़रेबियों की कोई कमी नही है । इल्म़ को तोड़ मरोड़ कर पेश किया जा रहा है। तालिब- ए- इल्म़ के लिये इल्म हासिल के बजाय सऩद् हासिल करना ज़रूरी है। सच्चाई और वफादारी सिर्फ बातों में शामिल है। इश्क दिल की बजाय दिम़ाग से किया जाने लगा है । सोचता हूं किस क़दर इस प़समंज़र मैं खुद को शामिल करूँ। इसी पशोपेश में ज़िंन्दगी गुज़ार रहा हूँ । जे़हन से तो समझौता कर लूँ। पर रूह से समझौता कैसे करूँ?