जीना -मरना ज़िन्दगी की रीत है
जीना- मरना ज़िन्दगी की रीत है
गुनगुनाती धड़कनों पर गीत है
प्रेम है इससे हमारा कुछ अलग
बेवफ़ा होकर भी अपनी मीत है
रात का तम यदि कहीं घनघोर है
तो कहीं पर मुस्कुराती भोर है
ये बढ़े आरोह सी ऊपर अगर
तो चले अवरोह की भी ये डगर
नित नई सरगम सजा संगीत है
जीना- मरना ज़िन्दगी की रीत है
दिन सुनहरे चाँदनी सी रात है
ज़िन्दगी खुशियों भरी बरसात है
बीच में गम की अगर पगडंडियाँ
तो खुशी की भी वहाँ कुछ क्यारियाँ
मौत से रहना नहीं भयभीत है
जीना- मरना ज़िन्दगी की रीत है
भूलता इंसान जब इंसानियत
पाल लेता है बुरी बस एक लत
स्वार्थ ईर्ष्या द्वेष से भर झोलियाँ
नफ़रतों की बोलता है बोलियाँ
पर हमेशा प्यार की ही जीत है
जीना- मरना ज़िन्दगी की रीत है
ज़िन्दगी जीना नहीं आसान है
हर डगर इसकी बहुत अनजान है
साथ होते हैं यहाँ अपने अगर
तो सरल हो जाती हर टेढ़ी डगर
इसलिये ही तो बनाई प्रीत है
जीना- मरना ज़िन्दगी की रीत है
10-03-2021
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद