ज़िंदगी
ज़िंदगी के इतने सवाल क्यों हैं ?
ज़िंदगी में इतने बवाल क्यों हैं ?
तक़ाज़े तक़ाज़े और तक़ाज़े,
इनमें यूँ इतने उछाल क्यों हैं?
हैं मुहब्बतें ही फरमान रब का,
नफरत में इतने उछाल क्यों हैं?
मिला वो जो तू लिखा के लाया,
और न मिलने का मलाल क्यों है?
समय का कस कर पड़ा है चाँटा,
गाल उनके वरना लाल क्यों हैं।