ज़िंदगी काटी जा रही
मार्च के अंतिम सप्ताह से चाय-नाश्ता छोड़ दिया, घर के सभी सदस्यों ने दिन में एकबार और रात में एकबार ही भोजन ले रहे !
पुरानी जांता-चक्की निकाली गई, उसी से दर्रे कर व पीसकर घांटा, घांटी, दलिया, खिचड़ी, बगिया, मक्के की रोटियां, सत्तू और सब्जी में सिर्फ़ आलू व सोयाबीन ही खाद्य के रूप में भोग लग रही, क्योंकि आर्थिक कड़की हावी होने लगी थी. वैसे सर्वोत्तम आहार ‘शाकाहार’ है !
चूँकि बाहर निकलना भी नहीं था, हड़ताल के कारण वेतन बंद थे, थोड़ी-बहुत जमापूँजी 26 किलोमीटर दूर एटीएम रहने के कारण रुपये निकासी संभव नहीं थी, क्योंकि सभी तरह के वाहन बंद थे !
तभी तो ज़िंदगी कट नहीं, काटी जा रही है !