** ज़ख्म जिंदगी के **
ज़ख्म जिंदगी के सोने ना देते
रोने ना देते ज़ख्म जिंदगी के
ज़ख्म जिंदगी के रह रह रुलाते
बडी मुश्किल से ज़ख्म छुपाते
दिखाये किसको दिलके ये छाले
ज़ख्म ये पाले हमने दर्दे-मुहब्बत
जिन्दा हैं अब तक मारे मुहब्बत
तुझ पे है वारे जहां-सारे कुंवारे
मुझसा ना कोई दिल अपना वारे
क्या वादे तिहारे झूठे थे सारे
वो क्या इसारे झूठे थे सारे-सारे
नैनो से तुमने जो किये थे इसारे
लगी हमको वो जो तीरे नज़र यूं
घायल हैं अबतक ग़म-मारे तिहारे
ज़ख्मो को धोता तेरी यादो पे रोता
दिल अपना खोता ना रातों को सोता
मैंने ज़ख्म कुरेदे है दिल साफ हो ले
मैल है जो दिल में वो साफ हो लें
तुमने ना सोचा दिल तुमने ना समझा
होते हैं अपना यूं क्यूं बन के पराया
अब भी है मौका ना दो दिल को धोखा
करना कर लो मुझसे इज़हार-ए-मुहब्बत
ना मिलता है जीवन फिर मिलना दोबारा
आ जाओ कि होलें अब पौबारह हमारा
ज़ख्म जिंदगी के सोने ना देते
रोने ना देते ज़ख्म जिंदगी के ।।
?मधुप बैरागी