ग़ज़ल
दस्ते तलब कोई सहारा है कहाँ?
अब इस जहा कोई हमारा है कहाँ?
ख़ुद को पराया कर चुके ऐ बुलहवस
अब तो बता दे घर तुम्हारा है कहाँ?
लगता है अबके ख़ुदकुशी ही रास्ता
ज़िंदा रहे तो फिर गुज़ारा है कहाँ?
ये ज़िन्दगी भी अब किसी की हो गयी
अब इस पे सांसो का इजारा है कहाँ?
उस रात से फिर नींद भी आयी नहीं
उसके बिना अपना गुज़ारा है कहाँ?
चमको सितारा बन के थोड़ी देर और
तुमको अभी नभ से उतारा है कहा