** ग़मेंदिल कैसे छुपाऊं **
26.3.17 * गीत * प्रातः 10.14
गीत कोई गुनगुनाऊँ क्या मैं अब तुमको सुनाऊं
प्रीत की है रीत ये तो ग़मेंदिल कैसे
छुपाऊं मैं
अरे दिल है जो हरा-हरा ग़म से यूं भरा-भरा
ना जाने कौन सा है डर दिल है अब
डरा-डरा
तुम कौन सी हो मंज़िल दिल तो अब
मरा-मरा
अरे लाल था गुलफ़ाम था तेरा ही ग़ुलाम था
तूने इस क़दर है छोड़ा कहीँ का नहीं है छोड़ा
अरे लाल हुआ लहू से तूने बस इल्ज़ाम दिया
क्यूं ना अपना नाम दिया तूने बस इल्ज़ाम दिया
तूने बस इल्ज़ाम दिया तूने बस इल्ज़ाम दिया
दिल ने तुझे मान दिया तूने बस बदनाम किया
बोलो तूने क्या किया बोलो तूने क्या किया
यूं ही मुझको बदनाम किया राह-सरेआम किया
राह सरेआम किया राह सरेआम किया
बोलो ये क्या काम किया मुफ़्त में बदनाम किया
सर पे ये इल्ज़ाम दिया सर पे ये इल्ज़ाम दिया
गीत कोई गुनगुनाऊँ क्या मैं अब तुमको सुनाऊं
प्रीत की है रीत ये तो ग़मेंदिल कैसे छुपाऊं मैं
?मधुप बैरागी