ख़्वाब
मैंने देखा था इक ख़्वाब मगर
आँख लगने लगी उसमें मेरी
हर हक़ीक़त बनने लगा ख़्वाब
जब लेने लगा मैं ख़्वाब ही ख़्वाब ।।
तन्द्रा टूटी-2 जबी मेरी
हक़ीक़त कुछ और बयां करती थी
जिंदगी मेँ-2 चलना था
हकीकत के इशारों पर-2
मैंने समझा था तब
ख़्वाब होते नहीं सब पूरे-2
अब जिन्दगी का रुख मैंने पहचाना
बदली दुनियां मेरी-2
बदला ख़्वाब का रुख अनजाना
जीना सीखा है अब मैंने-2
जिन्दगी की हकीकत के सहारे
ख़्वाब का सिलसिला-2
हकीकत के दायरे में अब ढला
मैंने देखा इक ख़्वाब मगर ।।
?मधुप बैरागी