ख़त
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“हुई दस्तक दरारों से,निकलकर इंतजार आया,
खुली है खिड़कियाँ देखो,किसी अपने का तार आया।”
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“लिफाफा बंद जैसी बेपता सी जिन्दगी ये थी,
वो कुछ लफ्जों में भर मुस्कान,ले खुशियां हज़ार आया।
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“हुई दस्तक दरारों से,निकलकर इंतजार आया,
खुली है खिड़कियाँ देखो,किसी अपने का तार आया।”
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“लिफाफा बंद जैसी बेपता सी जिन्दगी ये थी,
वो कुछ लफ्जों में भर मुस्कान,ले खुशियां हज़ार आया।