“क़ता”
“क़ता”
हम भी आ नहीं पाए तिरे खिलते बहार में
तुम भी तो नहीं आए मिरे फलते गुबार में
इक पल को ठहर जाते कभी तुम भी पुकार कर
तो शिकवा न करती डगर बढ़ी ढ़लते किनार में॥
महातम मिश्र गौतम गोरखपुरी
“क़ता”
हम भी आ नहीं पाए तिरे खिलते बहार में
तुम भी तो नहीं आए मिरे फलते गुबार में
इक पल को ठहर जाते कभी तुम भी पुकार कर
तो शिकवा न करती डगर बढ़ी ढ़लते किनार में॥
महातम मिश्र गौतम गोरखपुरी