ख़ुद से अपना हाथ छुड़ा कर - संदीप ठाकुर
छोड़ जाते नही पास आते अगर
हे पुरुष ! तुम स्त्री से अवगत होना.....
समस्या विकट नहीं है लेकिन
बूढ़ा हो बच्चा हो या , कोई कहीं जवान ।
रात बीती चांदनी भी अब विदाई ले रही है।
प्यार खुद से कभी, तुम करो तो सही।
हर एक चोट को दिल में संभाल रखा है ।
सुनो रे सुनो तुम यह मतदाताओं
गजल
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
"साहित्यकार और पत्रकार दोनों समाज का आइना होते है हर परिस्थि
हैं राम आये अवध में पावन हुआ यह देश है