"फ़िर से आज तुम्हारी याद आई"
जलते हुए चूल्हों को कब तक अकेले देखेंगे हम,
करूँ तो क्या करूँ मैं भी ,
चलते रहे थके नहीं कब हौसला था कम
दुनिया बदल गयी ये नज़ारा बदल गया ।
तू सुन ले मेरे दिल की पुकार को
अव्यक्त भाव को समझना ही अपनापन है और इस भावों को समझकर भी भु
हिन्दी भाषा के शिक्षक / प्राध्यापक जो अपने वर्ग कक्ष में अंग
भक्त औ भगवान का ये साथ प्यारा है।
हसलों कि उड़ान
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर