आंखों की चमक ऐसी, बिजली सी चमकने दो।
अपूर्ण नींद एक नशे के समान है ।
गमों की चादर ओढ़ कर सो रहे थे तन्हां
सद्विचार
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
किसान
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
प्यार है ही नही ज़माने में
मंजिल के जितने नजदीक होगें , तकलीफ़ें और चुनौतियां उतनी ज्या
उम्र न जाने किन गलियों से गुजरी कुछ ख़्वाब मुकम्मल हुए कुछ उन
दिगपाल छंद{मृदुगति छंद ),एवं दिग्वधू छंद
*करते श्रम दिन-रात तुम, तुमको श्रमिक प्रणाम (कुंडलिया)*
हे वतन तेरे लिए, हे वतन तेरे लिए